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कविता

हिंदी हमारी

सुरजन परोही


हिंदी न आगे रखो
न पीछे
साथ-साथ रखो
घर-बाहर-दफ्तर में
मन के घर में, वाणी में
परदेस में
हर भाषा सीख
पर अपनी भाषा मत भूल
मातृभाषा नाश
तो धर्म-जाति नाश

 


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हिंदी समय में सुरजन परोही की रचनाएँ